नौशाद मंसूरी✍🏻 शाहगंज (जौनपुर) मोटे कमीशन के चक्कर मे नगर और आसपास के कुछ स्कूलों में खुलेआम किताबें ,कापियां और अन्य शिक्षण सा...
नौशाद मंसूरी✍🏻
शाहगंज (जौनपुर) मोटे कमीशन के चक्कर मे नगर और आसपास के कुछ स्कूलों में खुलेआम किताबें ,कापियां और अन्य शिक्षण सामग्रियां बेची जा रही हैं।और प्रशासन नींद की आगोश में सोया है।शायद उसे खबर ही नही या फिर सब जानते हुए भी कुम्भकर्णी निद्रा में लीन है।
बता दें नगर और आस पास के कुछ इंग्लिश स्कूलों में नए सत्र के कुछ दिन पहले ही स्कूल संचालक अपने स्कूलों में कापी किताबों की दुकानों को सज़ा लिए हैं।जिससे उनको भारी भरकम कमाई हो जाती है। यहां भी सारा खेल कमीशन का ही है ।कुछ सालों पहले स्कूल चाहे हिंदी मीडियम हो या फिर इंग्लिश मीडियम स्कूलों की कापी किताबें दुकानों पर ही मिलती थी।मगर जब स्कूल संचालकों को लगने लगा की कापी किताबों विशेषकर सीबीएससी की किताबों में अच्छी खासी कमाई है ।तो वह अपने स्कूलों से ही मोटे दामों पर किताबों को बेचने लगा ।यहीं तक मामला रुका नही अब तो कापी किताब की बिक्री के साथ मोजे, टाई, बेल्ट, लोवर, टी शर्ट, ड्रेस, बैग, टिफिन, आदि समान बिकने लगा मानो यह स्कूल न होकर कोई शॉपिंग काम्प्लेक्स हो।और तो और यहां मूल्य एकदम फिक्स है मोल भाव का तो कोई सवाल ही नही होता जैसे बच्चा अगर सीबीएससी बोर्ड के एलकेजी में पढ़ता है तो सारी कापी किताब लोवर बैग ड्रेस और अन्य सामग्रियों के साथ सात से दस हज़ार रुपये तक देने पड़ते है।ऐसे में अभिभावक भी अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा के नाम शोषित होना पड़ता है और स्कूल संचालकों की चांदी कटती है।
अब सवाल उठता है की जब शासन के मंशानुसार विद्यालयों में किसी भी तरह की शिक्षण सामग्री का बिक्री नही होनी चाहिए तो प्रशासन आखिर कर क्या रहा है क्या उसे इस पर रोक नही लगानी चाहिए जिससे अभिभावकों का शोषण होने से बचाया जा सके।
क्या है आरटीई या शिक्षा का अधिकार.............
01 अप्रैल 2010 को आरटीई यानि राईट टू ऐजूकेशन अर्थात शिक्षा का अधिकार एकसाथ देशभर में लागू किया गया था। जिसके तहत पहली कक्षा से आठवीं तक इसके तहत बच्चों केा मुफ्त शिक्षा का प्रावधान है। इस अधिकारी के तहत 06 वर्ष से 14 वर्ष की उम्र के बच्चों केा अपने आसपास के प्रत्यके स्कूल में दाखिला का अधिकार होगा, चाहे वो स्कूल सरकारी हो या गैर सरकारी या अन्य। इस नियम के तहत गैर सरकारी, निजी या अन्य किसी भी स्कूल में 25 फीसदी सीटें गरीब वर्ग के बच्चों को मुफ्त में मुहैया करानी होंगी। इसके तहत जो गरीब बच्चा निजी या कान्वेंट स्कूल में दाखिला लेते हैं, उनकी सूचा प्राप्त होने पर राज्य सरकार उन्हें पैसों का नियमानुसार भुगतान करती हैै।
आरटीई की अवहेलना पड़ सकती है भारी..........
यदि कोई स्कूल अनुच्छेद 21 क और आरटीई अधिनियम 01 अप्रैल 2010 की अवहेलना करता है तो उक्त् स्कूल के खिलाफ सख्त कार्यवाही का प्रावधान है जिसके अनुसार यदि कोई गैर सरकारी स्कूल 25 प्रतिशित सीटें गरीब परिवार के बच्चो को मुहैया नहीं करवाता है तो उसके खिलाफ शिकायत होने पर उसकी मान्यता निरस्त की जा सकती है या 25 हजार से 50 हजार रुपये तक का जुर्माना भी हो सकता है।
और भी हैं स्कूलों के मानक.......
सभी स्कूलों में शिक्षित-प्रशिक्षित अध्यापक/अध्यापिकायें होने चाहिए और अध्यापक-छात्र का अनुपात 1ः30 होना चाहिए। इसके अलावा स्कूलों में मूलभूत सुविधायें जैसे- हवादार कक्ष, खेल का पर्याप्त मैदान, पीने का स्वच्छ पानी, पुस्तकालय आदि की अनिवार्य रूप से व्यवस्था होनी चाहिए। स्कूल की इमारत भी मानकों के अनुरूप ही बनी होनी चाहिए, जिससे कि आये दिन स्कूलों की इमारतें गिरने वाली घटनायें न हो सकें। इसके अलावा स्कूल परिसर के आसपास या अन्दर बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, तंबाकू, मसाले आदि की दुकान नहीं होनी चाहिए।
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